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देवी सती से जुड़े शक्तिपीठों की पूरी कथा, Mata Sati Story in Hindi – जन्म से लेकर दक्ष यज्ञ तक

देवी सती की कथा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जो भक्ति, त्याग और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। यह कथा शिवपुराण, देवी भागवत और अन्य ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है। इस कथा का संबंध भगवान शिव, देवी सती और उनके पिता राजा प्रजापति दक्ष से है।

1. देवी सती का जन्म

सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष थे। दक्ष बहुत शक्तिशाली और तेजस्वी राजा थे। उन्होंने अनेक यज्ञ किए और अपनी शक्ति से देवताओं में श्रेष्ठता प्राप्त की। उनकी पत्नी का नाम प्रसूति था, जो स्वयं स्वायंभुव मनु की पुत्री थीं।

प्रसूति ने घोर तपस्या कर देवी आदिशक्ति की उपासना की और उनके आशीर्वाद से एक दिव्य कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम सती रखा गया। सती स्वयं देवी आदिशक्ति का अवतार थीं और उनके जन्म का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की अर्धांगिनी बनना था।


2. देवी सती की शिव-भक्ति

बाल्यकाल से ही देवी सती भगवान शिव की आराधना में लीन रहने लगीं। वे ध्यान, तप और साधना में मग्न रहती थीं। जब वे युवा हुईं, तो उनके पिता दक्ष ने उनका विवाह किसी अन्य देवता से करने की योजना बनाई, क्योंकि वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे।

सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव को ही अपना पति स्वीकार करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया कि वे ही उनके पति बनेंगे।



3. सती और शिव का विवाह

भगवान शिव ने सती का हाथ स्वीकार किया, और ब्रह्मा जी के आग्रह पर दक्ष को भी यह विवाह स्वीकार करना पड़ा। इस प्रकार, सती और शिव का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ।

शिव और सती का दांपत्य जीवन बहुत आनंदमय था। वे कैलाश पर्वत पर निवास करने लगे और आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने लगे।



4. दक्ष यज्ञ और सती का अपमान

समय बीतता गया। एक दिन राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवताओं, ऋषियों-मुनियों और श्रेष्ठ जनों को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया।

सती को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता ने इतना बड़ा यज्ञ किया है और उन्हें आमंत्रित नहीं किया, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने शिव जी से अपने पिता के घर जाने की इच्छा प्रकट की।

शिव जी ने सती को समझाया कि बिना निमंत्रण के वहां जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि दक्ष उनसे द्वेष रखते हैं। लेकिन सती अपने पिता के घर जाने के लिए अडिग रहीं। अंततः शिव जी ने उन्हें अनुमति दे दी, और वे अपने वाहन नंदी के साथ वहां पहुंच गईं।

जब सती अपने पिता के यज्ञस्थल पर पहुंचीं, तो वहां का वातावरण देखकर वे स्तब्ध रह गईं। दक्ष ने उनका और भगवान शिव का अपमान किया। उन्होंने भगवान शिव को तपस्वी, गृहस्थ जीवन के अयोग्य और भिक्षुक कहकर अपमानित किया।

सती अपने पति का यह अपमान सहन नहीं कर सकीं। उन्होंने अपने पिता को समझाने का प्रयास किया, लेकिन दक्ष अपने अहंकार में अड़े रहे। अंततः, सती ने क्रोधित होकर घोषणा की कि वे इस शरीर को अब और अधिक धारण नहीं करेंगी, क्योंकि यह शरीर उनके अपमानित पिता की संतान का है।

उन्होंने अग्नि में योगबल से स्वयं को समर्पित कर दिया और अपने प्राण त्याग दिए।


5. भगवान शिव का तांडव और वीरभद्र का प्रकोप

जब भगवान शिव को सती के देहत्याग की सूचना मिली, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से संपूर्ण ब्रह्मांड कांप उठा।

क्रोध में उन्होंने अपनी जटाओं से वीरभद्र नामक गण उत्पन्न किया और उन्हें दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया। वीरभद्र और अन्य गणों ने दक्ष के यज्ञस्थल पर हमला कर दिया, सभी देवताओं को पराजित कर दिया और यज्ञ को नष्ट कर दिया।

वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया, जिससे वहां हाहाकार मच गया।

बाद में, ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे दक्ष को पुनर्जीवित करें। शिव जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने दक्ष को जीवनदान दिया। लेकिन उनका सिर पुनः प्राप्त न होने के कारण उन्होंने उसे बकरे का सिर प्रदान कर दिया।




6. शिव का विरह और सती का पुनर्जन्म

भगवान शिव अत्यंत शोकाकुल हो गए और सती के पार्थिव शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। उनका यह रूप अत्यंत भयानक था और इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।

तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया। ये भाग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। आज भी इन स्थानों को श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है।

सती ने पुनः पार्वती के रूप में हिमालय राज के घर जन्म लिया और घोर तपस्या कर पुनः भगवान शिव को प्राप्त किया।



7. शक्ति पीठों का महत्व

सती के शरीर के टुकड़े गिरने से जो 51 शक्तिपीठ बने, वे हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान माने जाते हैं। प्रत्येक शक्तिपीठ का संबंध देवी सती के शरीर के किसी न किसी अंग से होता है।

https://youtu.be/JN1twIkVcVE

शक्तिपीठ इस प्रकार हैं:

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Source – Wikipedia

देवी सती की कथा भक्ति, प्रेम, आत्मसम्मान और शक्ति का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि आत्म-सम्मान और सच्चे प्रेम के लिए किसी भी प्रकार के त्याग की आवश्यकता हो सकती है। सती का बलिदान न केवल स्त्री शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।

शिव और सती की यह कथा आज भी भक्ति मार्ग के साधकों के लिए एक महान प्रेरणा बनी हुई है।

देवी सती से जुड़े शक्तिपीठों की पूरी कथा, Mata Sati Story in Hindi – जन्म से लेकर दक्ष यज्ञ तक

https://youtu.be/DMPnwzIg_wg

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