
काल भैरव को मास मदिरा क्यू चडाई जाती है
काल भैरव को मांस-मदिरा क्यों चढ़ाई जाती है?
सनातन धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा उनके विशेष स्वरूपों और प्रतीकों के आधार पर की जाती है। भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की उपासना विशेष रूप से तंत्र मार्ग, शक्ति साधना और भय नाशक उपायों में की जाती है। काल भैरव को मांस और मदिरा अर्पित करने की परंपरा कई तांत्रिक ग्रंथों, पुराणों और लोक मान्यताओं में वर्णित है। इस ब्लॉग में हम इस अनोखी परंपरा के पीछे छिपे धार्मिक, तांत्रिक और आध्यात्मिक रहस्यों को समझेंगे।
काल भैरव कौन हैं?
काल भैरव भगवान शिव के आठ भैरव रूपों में से एक हैं और इन्हें काशी के अधिपति (नगर रक्षक) माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने अहंकारवश भगवान शिव का अपमान किया, तब शिव के रौद्र रूप से काल भैरव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काट दिया। इस घटना के कारण वे ब्रह्म हत्या दोष से ग्रसित हो गए, और इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने काशी में भिक्षाटन किया। अंततः उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई और वे काशी के रक्षक देवता बने।
मांस और मदिरा अर्पण करने के पीछे के धार्मिक और तांत्रिक कारण
1. तांत्रिक परंपरा और काल भैरव की उपासना
काल भैरव की उपासना मुख्य रूप से तंत्र मार्ग से की जाती है। तंत्र शास्त्र में मांस, मदिरा, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन को पंच मकार कहा जाता है। इनका उपयोग साधना में एक प्रतीकात्मक रूप से किया जाता है, जिससे साधक सांसारिक बंधनों को छोड़कर आत्मज्ञान की ओर बढ़ सके।
2. अहंकार और सांसारिक मोह का त्याग
मांस और मदिरा भोगविलास और अहंकार के प्रतीक माने जाते हैं। जब कोई साधक इन्हें भैरव को अर्पित करता है, तो इसका अर्थ यह होता है कि वह अपने भीतर के राग-द्वेष, लोभ और अहंकार को समाप्त कर रहा है और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान को समर्पित कर रहा है।
3. अघोर और कापालिक साधना में प्रयोग
अघोरी, कापालिक और नाथ संप्रदाय के साधु भैरव की विशेष पूजा करते हैं। इन साधकों के लिए मांस और मदिरा केवल भोग नहीं बल्कि आत्मज्ञान की प्राप्ति का एक साधन है। वे इसे सांसारिक मोह से मुक्त होने का एक उपाय मानते हैं।
4. नकारात्मक ऊर्जा और भय का नाश
काल भैरव को मदिरा चढ़ाने से व्यक्ति के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि यह क्रिया भय, चिंता और बुरी शक्तियों को दूर करने में सहायक होती है। विशेषकर तांत्रिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग बुरी आत्माओं और दुष्ट शक्तियों को शांत करने के लिए किया जाता है।
5. काल भैरव को भोग का स्वरूप मानना
काल भैरव को समर्पित विभिन्न ग्रंथों में उन्हें भोग का स्वरूप माना गया है। इसलिए उन्हें मदिरा और मांस अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और साधकों को विशेष कृपा प्रदान करते हैं।
पौराणिक और धार्मिक संदर्भ
1. शिव पुराण में वर्णन
शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव के भैरव रूप को तांत्रिक साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि भैरव को मांस और मदिरा अर्पित करने से त्वरित कृपा प्राप्त होती है।
2. काल भैरव अष्टकम्
काल भैरव अष्टकम् में उनकी महिमा का वर्णन किया गया है और कहा गया है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा करता है, उसे समस्त भय से मुक्ति मिलती है।
3. लोक मान्यता और मंदिरों की परंपरा
काशी, उज्जैन, और कई अन्य स्थानों में स्थित भैरव मंदिरों में भक्तगण मांस-मदिरा अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
भक्तों के लिए लाभ
1. शत्रु बाधा और शत्रु नाश
काल भैरव की उपासना करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है और जीवन में विजय प्राप्त होती है। मांस और मदिरा अर्पित करने से विशेष रूप से शत्रु बाधा निवारण में सहायता मिलती है।
2. भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति
काल भैरव भय और भूत-प्रेत बाधाओं से रक्षा करते हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और सुरक्षा प्राप्त होती है।
3. आर्थिक संकट का समाधान
कई भक्त मानते हैं कि काल भैरव की पूजा करने और उन्हें मदिरा अर्पित करने से आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं और धन की प्राप्ति होती है।
4. न्यायिक मामलों में सफलता
काल भैरव को न्याय का देवता भी माना जाता है। जो लोग कानूनी परेशानियों में फंसे होते हैं, वे भैरव की पूजा करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
काल भैरव को मांस और मदिरा अर्पित करने की परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह साधक को सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है। तंत्र साधना में इसे आत्मसमर्पण और भय नाशक उपाय के रूप में देखा जाता है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि भक्ति केवल बाहरी आडंबरों से नहीं, बल्कि आंतरिक श्रद्धा और समर्पण से सार्थक होती है।
🔱 “जय काल भैरव!”
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