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नैना देवी माता का इतिहास एक पौराणिक गाथा और श्रद्धा का केंद्र

नैना देवी माता का इतिहास: एक पौराणिक गाथा और श्रद्धा का केंद्र

भूमिका

भारत एक ऐसा देश है जहां देवी-देवताओं की पूजा अनादि काल से होती आ रही है। यहां देवी शक्ति के अनेक रूपों को पूजा जाता है और उनमें से एक प्रमुख स्वरूप माता नैना देवी हैं। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित नैना देवी मंदिर एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है, जिसे देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। इस ब्लॉग में हम माता नैना देवी के इतिहास, पौराणिक कथा, मंदिर की स्थापना, चमत्कार, और यहां होने वाले प्रमुख त्योहारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।


नैना देवी माता का पौराणिक इतिहास

माता नैना देवी का इतिहास सती और शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने जब अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपमान सहन नहीं कर पाई तो उन्होंने योग अग्नि में आत्मदाह कर लिया। इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया।

भगवान विष्णु ने शिव के क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि नैना देवी मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां माता सती की दोनों आंखें (नयन) गिरी थीं। इसलिए इस स्थान का नाम “नैना देवी” पड़ा।


नैना देवी मंदिर की स्थापना और ऐतिहासिक महत्व

माता नैना देवी मंदिर का उल्लेख महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। इसके अलावा, इस मंदिर से जुड़ी कई ऐतिहासिक घटनाएं भी हैं:

1. राजा बीर चंद द्वारा मंदिर की स्थापना

इस मंदिर का निर्माण हिमाचल प्रदेश के राजा बीर चंद ने करवाया था। कहा जाता है कि राजा को माता नैना देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें मंदिर निर्माण का आदेश दिया। इसके बाद, राजा बीर चंद ने इस पवित्र स्थान पर भव्य मंदिर की स्थापना की।

2. गुरु गोविंद सिंह जी और नैना देवी

यह मंदिर सिख इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1687 ईस्वी में, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने यहां आकर देवी की आराधना की थी। उन्होंने नैना देवी से शक्ति प्राप्त कर मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इस घटना को “भगवती शक्ति आराधना” के रूप में जाना जाता है।


मंदिर का धार्मिक महत्व और चमत्कार

1. स्वयं प्रकट हुए थे माता नैना देवी

माना जाता है कि माता नैना देवी स्वयं प्रकट हुई थीं और उनके चमत्कारों के कारण यह स्थान प्रसिद्ध हुआ। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए माता की आराधना करते हैं और अनेक भक्तों ने माता के चमत्कारी दर्शन का अनुभव किया है।

2. माता नैना देवी की मूर्ति और पूजन विधि

मंदिर में माता नैना देवी की तीन मूर्तियां स्थापित हैं –

  1. माता काली
  2. माता नैना देवी
  3. भगवान गणेश

यहां माता की विशेष आरती और पूजा विधि के अंतर्गत नवदुर्गा व्रत, दुर्गा सप्तशती पाठ, और हवन का आयोजन किया जाता है।


नैना देवी मंदिर कैसे पहुंचे?

1. सड़क मार्ग से

यह मंदिर बिलासपुर जिले में स्थित है और चंडीगढ़ से लगभग 100 किमी की दूरी पर है। हिमाचल प्रदेश और पंजाब से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

2. रेल मार्ग से

नजदीकी रेलवे स्टेशन आनंदपुर साहिब (पंजाब) है, जो मंदिर से लगभग 30 किमी दूर स्थित है। यहां से टैक्सी और बस सेवा आसानी से मिल जाती है।

3. हवाई मार्ग से

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ एयरपोर्ट है, जहां से सड़क मार्ग द्वारा नैना देवी मंदिर पहुंचा जा सकता है।


मंदिर में प्रमुख पर्व और मेलें

1. नवरात्रि महोत्सव

नवरात्रि के दौरान, माता नैना देवी मंदिर में विशेष पूजन और भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है।

2. श्रावण अष्टमी मेला

श्रावण मास की अष्टमी को यहां एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

3. चैत्र नवरात्र मेला

चैत्र नवरात्रि के समय यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं और भक्त माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं।


माता नैना देवी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह शक्ति, आस्था और चमत्कार का प्रतीक भी है। यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।

अगर आप भी देवी मां की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो एक बार माता नैना देवी के दर्शन अवश्य करें। माता नैना देवी की कृपा से सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

जय माता दी!

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