84 लाख योनियों का रहस्य और मानव जन्म का महत्व,पढ़े हमारे साथ
हमारे प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि जीव 84 लाख योनियों की यात्रा करता है और अंततः मनुष्य जन्म प्राप्त करता है। यह विचार हमें यह नोटबुक्स के लिए वह मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ और मूल्यवान है। अगर हम इसका सही उपयोग करें, तो मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं।
84 लाख योनियों का विभाजन
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, 84 लाख योनियों को विभिन्न स्थानों में विभाजित किया गया है:
30 लाख प्रकार के वृक्ष और उपाय
27 लाख प्रकार के केट और केट
14 लाख प्रकार के पक्षी
9 लाख प्रकार के जलचर जीव
4 लाख प्रकार के पशु, जिन्न, भूत-प्रेत और देवी-देवता
इन योनियों में जीव कर्मों का विचरण रहता है और अंततः मानव शरीर प्राप्त होता है। इस विचार का आध्यात्मिक संदेश यह है कि हम अपने जीवन कोवैकल्पिक नहीं करना चाहिए.
जीवन की चार उत्पत्ति विधियाँ
सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है कि सनातन धर्म की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है:
1. अंडज – अंडे से सामी जीव (पक्षी, सारिस्प, कीड़े आदि)।
2. जरायुज – माता के गर्भ से सामांय जीव (मनुष्य, स्तनधारी जीव)।
3. स्वेदज – पत्थर और रसायन से उत्पन्न जीव (कीटाणु, सूक्ष्म जीव)।
4. उद्भिज – भूमि से उत्पन्न जीव (वृक्ष और साधन)।

इन चार योनियों में भटकने के बाद जीव को मानव जन्म मिलता है, जिसे मुक्ति प्राप्त करने का एकमात्र साधन माना जाता है।
रामायण, महाभारत और भगवद गीता का संदेश
हमारे शास्त्र केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाले मार्गदर्शक भी हैं।
रामायण हमें यह सिखाती है कि जीवन में क्या करना चाहिए। यह संयम, कर्तव्यनिष्ठा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
महाभारत हमें यह सिखाती है कि जीवन में क्या नहीं करना चाहिए। यह हमें अधर्म, लोभ, मोह और व्यवहार के दुष्परिणाम कहते हैं।
श्रीमद्भगवद गीता हमें यही सिखाती है कि जीवन कैसे जीना चाहिए। यह निष्काम कर्म, भक्ति और आत्मा के महत्व को समझाता है।
मनुष्य जन्म का महत्व
अगर हमने अपने जीवन को वैकल्पिक कर दिया, तो अगला जन्म किसी अन्य योनि में हो सकता है, जहां से फिर से मानव जन्म मिलना बेहद कठिन होगा। इसलिए, हमें जीवन में सद्कर्म करना चाहिए, सत्संग में रहना चाहिए, भक्ति और ध्यान करना चाहिए, ताकि हम इस चक्र से मुक्त हो सकें।
84 लाख योनियों का यह सिद्धांत हमें सिखाने के लिए है कि हमें अपने मानव जीवन का कोई औचित्य नहीं होना चाहिए। धर्म, कर्म और भक्ति के मार्ग पर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। हमारे ग्रंथों में जो ज्ञान दिया गया है, वह केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि निषेध के लिए है। अरे, यह अमूल्य जीवन का सदुपयोग करें और ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करें।