निर्जला एकादशी – क्या आप जानते हैं निर्जला एकादशी क्यूँ खास होती हैं?
बिलकुल, नीचे 600 शब्दों में एक नो कॉपीराइट ब्लॉग दिया गया है जिसमें निर्जला एकादशी की खासियत को सरल और स्पष्ट भाषा में उपशीर्षकों सहित समझाया गया है।
निर्जला एकादशी – सबसे महत्वपूर्ण और पुण्यदायक व्रत
निर्जला एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष की सबसे कठिन लेकिन सबसे पुण्यदायक एकादशी मानी जाती है। यह एकादशी खासतौर पर भीमसेन एकादशी के नाम से भी जानी जाती है क्योंकि महाभारत के पांडव भीमसेन ने इसका पालन किया था।
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निर्जला एकादशी कब मनाई जाती है?
यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है, जो आमतौर पर मई या जून के महीने में होती है। इस दिन सूर्य की तपन बहुत तेज होती है और गर्मी चरम पर होती है, इसलिए इस दिन जल तक ग्रहण न करने का संकल्प एक कठिन तप के समान माना जाता है।

“निर्जला” शब्द का अर्थ
‘निर्जला’ का अर्थ है “बिना जल के”। इस दिन व्रती को न तो अन्न लेना होता है और न ही जल पीना होता है। यह उपवास पूरे दिन और रात चलता है और अगले दिन द्वादशी के समय पारण (व्रत खोलना) किया जाता है। इस कठिन व्रत को करने से सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
भीमसेन और निर्जला एकादशी का संबंध
पुराणों में वर्णन है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीम को बहुत भूख लगती थी, इसलिए वे अन्य एकादशियों का उपवास नहीं कर पाते थे। तब महर्षि व्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी करने की सलाह दी और कहा कि अगर वे इस एक व्रत को पूरी निष्ठा से कर लें तो उन्हें पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य मिलेगा। तभी से यह एकादशी भीमसेन एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
इस व्रत का आध्यात्मिक महत्व
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत को भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। निर्जला एकादशी पर व्रती भगवान विष्णु की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और कथा श्रवण करते हैं। यह व्रत पापों से मुक्ति, मानसिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।
स्वास्थ्य और आत्म-संयम का प्रतीक
इस दिन का उपवास शरीर और मन दोनों के लिए एक तप है। बिना जल और अन्न के रहकर व्यक्ति अपने आत्म-संयम को मजबूत करता है। गर्मी के मौसम में निर्जला रहना शरीर की सहनशक्ति को भी दर्शाता है। हालांकि, जिन लोगों की तबीयत ठीक न हो, उन्हें यह व्रत करने से पहले सलाह लेनी चाहिए।
दान और सेवा का महत्व
इस दिन जलदान, वस्त्रदान, और अन्नदान का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि निर्जला एकादशी के दिन जो व्यक्ति प्यासे को पानी पिलाता है, उसे भी व्रत के समान पुण्य प्राप्त होता है। कई लोग इस दिन प्याऊ लगवाते हैं या गरीबों को भोजन करवाते हैं।
व्रत की विधि
सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
दिनभर उपवास करें – जल भी न लें।
भगवान विष्णु की पूजा करें, तुलसी दल अर्पण करें।
रात्रि में जागरण करें या भजन-कीर्तन करें।
द्वादशी को ब्राह्मण या जरूरतमंद को अन्न-जल दान करके व्रत समाप्त करें।
निर्जला एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह आत्मनियंत्रण, श्रद्धा, सेवा और तपस्या का प्रतीक है। जो व्यक्ति इसे सच्चे मन से करता है, उसे न केवल आध्यात्मिक लाभ होता है बल्कि उसके जीवन में संयम और सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।