महावीर कबीर दास जयंती 2025: सत्य, अहिंसा और ज्ञान के प्रकाश की ओर एक यात्रा
हर वर्ष जेठ मास की पूर्णिमा को हम सब कबीर जयंती के रूप में मनाते हैं। यह दिन महान संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु महावीर कबीर दास जी के अवतरण का प्रतीक है। वर्ष 2025 में कबीर जयंती 12 जून को मनाई जाएगी। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा है जो अंधविश्वास, भेदभाव और रूढ़ियों के खिलाफ क्रांति का प्रतीक बन चुकी है।
कबीर दास जी का जीवन परिचय
कबीर दास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी के पास लहरतारा नामक स्थान पर हुआ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे एक विधवा ब्राह्मणी द्वारा जन्मे थे, लेकिन उन्हें एक जुलाहा मुस्लिम दंपत्ति नीरू और नीमा ने पाला। उनका जीवन आध्यात्मिकता, सादगी और समाज सुधार के आदर्शों का उदाहरण है।
कबीर का सन्देश: धर्म नहीं, कर्म ही महान है
कबीर दास जी ने हमेशा जात-पात, बाह्य आडंबर और धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का विरोध किया। उनके दोहे आज भी हमें यह सिखाते हैं कि—
> “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।”
इसका आशय स्पष्ट है—किसी की जाति, धर्म या बाहरी रूप को नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और कर्म को प्राथमिकता दी जाए।
महावीर कबीर: निर्भय और निष्पक्ष संत
कबीर दास जी ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों की कट्टरता पर सीधा प्रहार किया। वे मस्जिद और मंदिर दोनों की दीवारों से ऊपर उठकर ईश्वर की उस शक्ति को पहचानते थे जो दिल में बसती है।
> “मस्जिद ऊपर मूरख चढ़े, क्या बांग देई आवाज़।
जिस दिल में मूरख नाहिं, सो दिल कर ले साफ।।”
उनकी यह निर्भयता ही उन्हें “महावीर कबीर” बनाती है—जो सच के लिए समाज से लड़ा, रूढ़ियों को तोड़ा और मानवता को सर्वोच्च बताया।
कबीर जयंती का महत्व
आज के युग में जब समाज फिर से जाति, धर्म और विचारों के नाम पर बंट रहा है, कबीर जयंती हमें एक बार फिर यह याद दिलाती है कि—
- मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं होना चाहिए।
- धर्म का मतलब केवल पूजा नहीं, बल्कि सेवा और सच्चाई है।
- सच्चे संत वही हैं जो सबमें एक परमात्मा को देखें।
कबीर के प्रसिद्ध दोहे और उनका संदेश
1. **“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।“**
👉 आत्मचिंतन की शिक्षा देता है। दोष दूसरों में नहीं, पहले खुद में देखें।
2. **“कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।“**
👉 संतुलन, निष्पक्षता और समभाव की प्रेरणा।
3. **“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।“**
👉 धैर्य और समय के महत्व को समझाता है।
कबीर जयंती पर क्या करें?
- इस दिन हम सबको यह संकल्प लेना चाहिए कि—
- हम अपने व्यवहार में सच्चाई, सरलता और दया को स्थान देंगे।
- जाति-धर्म से ऊपर उठकर मानवता को अपनाएंगे।
- कबीर के दोहों को अपने जीवन में उतारेंगे।
आप चाहें तो इस दिन:
- कबीर वाणी का पाठ करें,
- जरूरतमंदों की सेवा करें,
- सोशल मीडिया पर उनके विचारों को साझा करें।
कबीर आज भी ज़िंदा हैं…
कबीर दास जी केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं हैं। वे हर उस इंसान के भीतर जीवित हैं जो सच्चाई बोलता है, अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है और इंसानियत को धर्म से ऊपर रखता है।
इस कबीर जयंती पर, आइए हम सब मिलकर उनके आदर्शों को फिर से जीवंत करें।
> “कबीर अमर वाणी कहे, जो जाने सो जिये।
ना जाने सो मर मिटे, जो जाने सो कहिए।।”