जय माता दी ! हमारे सभी पाठकों को। आज आप जानोगे हमारे साथ हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में स्थित शक्तिपीठ माता श्री चिंतपूर्णी छिन्मस्तिका धाम में लगने वाले हर साल की तरह सावन अष्टमी मेला इस बार कब मनाया जा रहा है।
विस्तार
माता श्री चिंतपूर्णी जी का इतिहास
भारत की देवभूमि हिमाचल प्रदेश में स्थित माता श्री चिंतपूर्णी का मंदिर आस्था, विश्वास और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। यह पावन धाम ऊना जिले के भरवां गाँव के समीप स्थित है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ आकर माँ चिंतपूर्णी के चरणों में अपनी “चिंता” छोड़ता है, उसकी सारी समस्याएँ स्वयं माँ दूर कर देती हैं, इसीलिए माँ को “चिंता हरने वाली देवी” कहा जाता है। इस मंदिर को “छिन्नमस्ता देवी” का स्थान भी माना जाता है, जो माँ दुर्गा के दस महाविद्याओं में से एक हैं।
पौराणिक कथा और महत्ता:
माँ चिंतपूर्णी का संबंध माँ सती की कथा से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तब माँ सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यह देख शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने माँ सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव करना प्रारंभ किया। संसार की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माँ सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया, जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
माँ चिंतपूर्णी का मंदिर भी ऐसा ही एक शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहाँ माँ सती के चरण या सिर का भाग गिरा था। यह स्थान हजारों वर्षों से साधकों और भक्तों का तीर्थ रहा है। यह मंदिर तीनों शक्तियों – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती – का प्रतीक भी माना जाता है।
स्थानीय लोककथा और स्थापना:
एक प्रचलित लोककथा के अनुसार, एक ब्राह्मण पुजारी “माई दास” को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि वे जंगल में एक पवित्र स्थान पर विराजमान हैं। माई दास ने उस स्थान पर पहुँचकर खुदाई की और वहाँ माँ की मूर्ति प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने उस स्थान पर एक मंदिर की स्थापना की। तभी से माँ चिंतपूर्णी की पूजा-अर्चना यहाँ परंपरागत रूप से होती आ रही है।
भक्ति और परंपरा:
माँ चिंतपूर्णी की आराधना विशेष रूप से नवरात्रों में की जाती है, जब लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं। विशेष रूप से चैत्र, श्रावण और आश्विन नवरात्रों में यहाँ विशाल मेलों का आयोजन होता है। भक्त जन यहाँ आकर अपनी मनोकामनाएँ माँ को अर्पित करते हैं और जब इच्छा पूरी हो जाती है, तो पुनः माँ के दर्शन के लिए धन्यवाद देने आते हैं।
सांस्कृतिक महत्व:
यह मंदिर केवल धार्मिक ही नहीं, अपितु सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ भजन-कीर्तन, कन्या पूजन, हवन, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ लोक नृत्य और संगीत का आयोजन भी होता है। इससे हिमाचल की समृद्ध परंपरा और संस्कृति का भी अद्भुत दर्शन होता है।
माँ चिंतपूर्णी मंदिर के 2025 के मेलों की विशेष झलक ।
भारत की देवभूमि हिमाचल प्रदेश में स्थित माँ चिंतपूर्णी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत पावन स्थल है, जहाँ हर वर्ष लाखों भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दर्शन हेतु आते हैं। वर्ष 2025 में भी इस मंदिर में तीन प्रमुख मेलों का आयोजन होगा, जिनकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता बहुत गहरी है। पहला मेला चैत्र नवरात्र के अवसर पर आयोजित होगा, जिसकी शुरुआत 30 मार्च 2025, रविवार को होगी। यह पावन नवरात्र 5 अप्रैल, शनिवार को श्री दुर्गाष्टमी के पर्व के साथ अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर होगा, और 6 अप्रैल, रविवार को श्री राम नवमी के दिन इसका समापन होगा। इस दौरान मंदिर प्रांगण में भक्तों की लंबी कतारें, माँ के जयकारों की गूंज और भक्ति भाव से ओत-प्रोत वातावरण श्रद्धालुओं को अध्यात्म से जोड़ देता है।
दूसरा प्रमुख मेला श्रावण अष्टमी पर आयोजित किया जाएगा। इसकी शुरुआत 25 जुलाई 2025, शुक्रवार को होगी जब श्रावण मास का मेला प्रारंभ होगा। यह मेला भी दुर्गाष्टमी और नवमी के पर्वों तक चलता है। 1 अगस्त को श्री दुर्गाष्टमी और 3 अगस्त को रविवार के दिन नवमी के साथ मेला संपन्न होगा। श्रावण मास शिव भक्ति के लिए जाना जाता है, और माँ शक्ति के इस रूप को देखने के लिए दूर-दूर से भक्तजन मंदिर पहुँचते हैं। इस मेले में लोक परंपराओं, भजन-कीर्तन, पूजा-अर्चना और प्रसाद वितरण का विशेष महत्व होता है।
वर्ष का अंतिम बड़ा मेला आश्विन नवरात्र में आयोजित किया जाएगा, जिसकी शुरुआत 22 सितंबर 2025, सोमवार को होगी। यह नवरात्र भी नौ दिनों तक चलकर 30 सितंबर को श्री दुर्गाष्टमी (मंगलवार) और 1 अक्टूबर, बुधवार को महानवमी के दिन संपन्न होगा। यह मेला विशेष रूप से माँ दुर्गा की आराधना और शक्ति उपासना को समर्पित होता है। इस दौरान मंदिर में सुंदर झाँकियाँ, अखंड ज्योत, हवन, और कन्या पूजन जैसे अनुष्ठान संपन्न होते हैं, जो भक्तों के मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करते हैं।
इन सभी मेलों के माध्यम से माँ चिंतपूर्णी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनता है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता, लोककला, और परंपराओं का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करता है। वर्ष 2025 में आने वाले ये तीनों मेले—चैत्र नवरात्र, श्रावण अष्टमी और आश्विन नवरात्र—भक्तों को माँ के चरणों में लीन होने और अपने जीवन में शुभता व शक्ति प्राप्त करने का एक दिव्य अवसर प्रदान करेंगे।