
संतोषी माता व्रत कथा : संपूर्ण कहानी, पूजा विधि और महिमा
परिचय
संतोषी माता हिंदू धर्म में संतोष और सुख-समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। इनकी पूजा विशेष रूप से शुक्रवार व्रत के माध्यम से की जाती है। यह व्रत खासतौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है ताकि उनके परिवार में सुख, शांति और धन-वैभव बना रहे। संतोषी माता की कथा को पढ़ने और सुनने से भक्तों की परेशानियाँ दूर होती हैं और उनके जीवन में संतोष आता है।
संतोषी माता की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले एक गरीब ब्राह्मण परिवार में सात भाई रहते थे। छह भाई व्यापार करते थे और धनवान थे, लेकिन सबसे छोटा भाई सरल और सच्चा था। वह अपने बड़े भाइयों की तरह व्यापार में नहीं लगा, जिससे उसकी भाभियाँ उसे तुच्छ समझती थीं और उसका अपमान करती थीं।
एक दिन छोटे भाई ने अपनी माँ से कहा कि वह भी धन कमाने जाना चाहता है। माँ की अनुमति लेकर वह व्यापार करने के लिए निकल पड़ा। यात्रा के दौरान उसे कुछ संत मिले, जिनकी सेवा करने के बाद उसे आशीर्वाद मिला। धीरे-धीरे वह बहुत धनवान बन गया और उसने कई वर्षों तक दूर देश में रहकर अच्छा व्यापार किया।
जब वह धन कमाकर अपने घर लौटा, तो उसकी भाभियों को जलन हुई। वे उसे अपमानित करने और परेशान करने के नए-नए उपाय करने लगीं। उन्होंने उसकी माँ से झूठी बातें कहकर उसे दुखी किया और उसकी पत्नी को भी कई तरह से सताया।
छोटे भाई ने अपनी माँ से कहा, “मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरी इतनी परेशानियाँ क्यों हो रही हैं?” इस पर उसकी माँ ने एक वृद्ध महिला से परामर्श लिया। वृद्ध महिला ने कहा, “अगर तुम अपनी परेशानियों से छुटकारा पाना चाहते हो तो संतोषी माता का व्रत रखो और उनकी कथा सुनो।”
संतोषी माता व्रत का आरंभ
माता के व्रत का महत्व जानकर छोटे भाई की पत्नी ने श्रद्धा से 16 शुक्रवार तक व्रत रखना शुरू किया। वह श्रद्धा भाव से माता की पूजा करती, कथा सुनती और प्रसाद के रूप में गुड़-चने का भोग लगाती। धीरे-धीरे उसके जीवन की समस्याएँ दूर होने लगीं और उसका पति पुनः समृद्ध होने लगा।
लेकिन उसकी भाभियों को यह सहन नहीं हुआ। एक दिन उन्होंने उसकी पूजा के दिन उसके बच्चों को खट्टी चीज़ें खाने को दे दीं। इससे माता नाराज हो गईं और पुनः परिवार में संकट आ गया। जब छोटे भाई की पत्नी को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसने भक्ति भाव से माता से क्षमा माँगी और पुनः व्रत करना शुरू किया। इस बार उसका व्रत संकल्पित और शुद्ध भाव से पूर्ण हुआ, जिससे संतोषी माता प्रसन्न हो गईं और उनके परिवार में सुख-शांति लौट आई।
संतोषी माता व्रत विधि
1. शुक्रवार को उपवास रखें और सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. माता की प्रतिमा या चित्र को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
3. गुड़ और चने का भोग अर्पित करें।
4. संतोषी माता की कथा सुनें और पूजा के अंत में आरती करें।
5. परिवार के सभी सदस्यों को गुड़-चने का प्रसाद दें और गरीबों को भी इसका वितरण करें।
6. इस व्रत में खट्टी चीजों का सेवन वर्जित होता है।
7. 16 शुक्रवार तक व्रत करें और अंतिम दिन गरीबों को भोजन कराएँ।
संतोषी माता व्रत का फल
इस व्रत को करने से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। पारिवारिक कलह समाप्त होती है, आर्थिक स्थिति सुधरती है और घर में शांति व सुख-समृद्धि बनी रहती है।
निष्कर्ष
संतोषी माता की पूजा और व्रत करने से भक्तों के जीवन में संतोष, धन-वैभव और सुख-शांति आती है। यह व्रत सरल है लेकिन श्रद्धा और विश्वास से करने पर माता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। यदि आप भी अपने जीवन में सुख और समृद्धि चाहते हैं, तो इस व्रत को विधिपूर्वक करें और माता की कृपा प्राप्त करें।
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